गुरुवार, 14 मार्च 2013

**हमारे आतंरिक सँसार से ही हमारा भौतिक सँसार बनता है**


खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है .... अक्लमंदी को कर इतना बुलंद बन्दे कि हर जवाब से पहले तू उससे पूछे इस तकदीर की सजा क्या है .... सजा न हो ऐसी तकदीर कभी बनायीं नहीं उसने फिर भी वो रजा न पूछे तो फिर मजा क्या है .... ??

इच्छाओं के पूरा नहीं होने और जीवन में असफल होनेवाले व्यक्ति अक्सर स्वयँ को कोसना शुरू कर देते हैं लेकिन यह गलत है .... !!

हम जो हैं और जैसे भी हैं, अपने व्यक्तित्व पर पड़े तमाम मुखौटों को हटाकर उसी मूलस्वरूप में जब हम स्वयँ को वास्तविक स्वरुप में अभिव्यक्त करने, हीनभावना से ग्रस्त होकर खुद को धिक्कारना बंद कर प्रेम करना और महत्त्व देना शुरू कर दें तो बदली हुई नयी तथा सार्थक सोच पर आधारित हमारा यह कार्य ईश्वरीय शक्ति के अनंत स्रोत से जुड़कर शक्तिशाली बनने की दिशा में उठाया गया कदम होगा क्योंकि ऐसा करके हम स्वयँ को ब्रह्मांडीय-शक्ति से जोड़ लेते हैं .... !!

हमारे आतंरिक सँसार से ही हमारा भौतिक सँसार बनता है इसलिए हमारी आत्म-छवि से ही अक्सर हमारा भाग्य तय होता है .... दरअसल हमारा जीवन खुद के प्रति महत्व के बारे में स्थापित विचारों का प्रतिबिम्ब है ....!!

       

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