कैसे जीते हैं वे जिनके, पाप का घड़ा है भरा हुआ,
विष ही क्यों अमृत को भी, पीकर मानुष मरा हुआ !!
डुबकी लगाया गँगा में, यूँ पाप समूचा धो डाला,
गदगद होकर सोच लिया, सौदा कितना खरा हुआ !!
विष पीकर भी मरा नहीं, अमृत से है डरा हुआ,
झूठी तसल्ली देता खुद को, घास गधा है चरा हुआ !!
बेड़ी है तो बांध ही लेगी, क्या लोहे क्या सोने की,
कर्म-शुभाशुभ बंधन हैं, इनमें मोक्ष नहीं है धरा हुआ !!
इच्छाओं का शमन करे जो, मोक्ष तो फिर है मुट्ठी में,
लबरेज हमेशा से हैवो इन्सां, प्रेम-से-लबालब भरा हुआ !!
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