गुरुवार, 7 मार्च 2013

जिंदगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो "मुकाम", वो फिर नहीं आते .... !!

                                                                                    

जीवन के सफ़र में लोग मिलते-बिछड़ते तो रहते ही हैं .... वक्त की धुंध में जो खो गए या बिछड़ गए, सिर्फ वो ही क्यों जो अभी भी साथ हैं वो भी सच्चे दोस्त होंगे ही इस बात की क्या गारण्टी है परन्तु जीवन इस तरह से सोचने पर अपनी लय-ताल खो देगा .... वास्तव में देखा जाए तो जीवन अपने-आप में एक पूरी की पूरी यूनिवर्सिटी है जो हमें निरन्तर सही बातों के संकेत अपने तरीके से दिया करती है, यह अलग बात है कि हममें से कितने उन संकेतों को पकड़ अथवा समझ पाते हैं और कई तो ऐसे भी हैं जो सब कुछ समझ कर भी लोभ-मोह-अहँकार के वशीभूत हो इन्हें अनदेखा कर देते हैं या फिर मजाक में उड़ा देते हैं परन्तु सच तो सच है और सच का कोई विकल्प नहीं होता है .... रह गयी बात सीखने की तो कोई भी कभी सब कुछ नहीं सीख पाता, मृत्युपर्यंत बहुत कुछ सीखने को बाकी रह जाता है .... दरअसल कुछ भी सीखने की सार्थकता इसी बात पर निर्भर करती है कि हमने थोड़ा या ज्यादा जो कुछ भी अपनी जिंदगी से सीखा और पाया उसका कितना सार्थक इस्तेमाल किया .... यही है दुनियादारी और यही है जिंदगी .... !!


                                                                                        

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