चन्द रुपयों में बिक जाता है इन्सान का जमीर, कौन कहता है कि **महँगाई** बहुत है .... हर डाल पे उल्लू बैठा है :~~
हर मोड़ पर ही उस्तरा लिए खड़े मिल जायेंगे !!
यकीनन सच कहता हूँ यहाँ पे नाई बहुत हैं !!
जम-जमाई दोनों जग में समझो एक समान !!
जम तो एक हैं पर यहाँ पे जमाई बहुत हैं !!
इंसान का इंसान से भाईचारा का पैगाम देते !!
जहां में ऐसे सफेदपोश कसाई बहुत हैं !!
मुँह में राम बगल में छुरी जैसे ईमान वाले !!
एक नहीं हजारों की सँख्या में भाई बहुत हैं !!
महँगाई डायन के सगे-सम्बन्धी दाम बढ़ाये जाते !!
महँगाई डायन तो एक है पर उसके जमाई बहुत हैं !!
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