मंगलवार, 5 नवंबर 2013

**अपने लिये जिये तो क्या जिये**


अस्पताल के एक रूम में गंभीर रूप से बीमार दो बुज़ुर्ग भर्ती थे, एक बुज़ुर्ग को रोज अपने बेड पर एक घंटा बैठने की इजाज़त दी जाती थी ताकि उसके फेफड़ों में भर जाने वाले पानी को शरीर से बाहर निकाला जा सके....उस बुज़ुर्ग का बेड कमरे की इकलौती खिड़की के पास मौजूद था लेकिन दूसरा बुजु़र्ग उठकर बैठने वाली हालत में भी नही था इसलिए अपने बेड पर हमेशा पीठ के बल लेटा रहता था और बड़ी मुश्किल से कोहनियों के सहारे ही लेटे-लेटे कभी-कभार सिर्फ सिर ही ऊँचा कर सकता था, दोनों बुज़ुर्ग घंटों आपस में बातें किया करते थे....वो अपनी पत्नियों और बच्चों की बात करते, परिवार की बात करते, नौकरी के दिनों की बातें तथा छुट्टियाँ कैसे बिताते थे वे समस्त बातें अर्थात लगभग हर विषय पर परस्पर चर्चायें किया करते .... !!

पहला बुज़ुर्ग जब एक घंटे के लिए कमरे की खिड़की के पास बैठता तो अपनी ओर से बाहर का सारा नज़ारा यानी ""आँखों-देखा"" हाल दूसरे लेटे हुए बुज़ुर्ग को इतने दिलचस्प और अलग-अलग ढंग से रोज़ बाहर की रँगों भरी ज़िंदगी के किस्से सुनाता कि लेटा हुआ दूसरा बुज़ुर्ग अपनी बीमारी और दर्द सब कुछ थोड़ी देर के लिए भूल सा जाता और वो खुद को आम लोगों की तरह ही स्वस्थ और ज़िंदगी से भरा हुआ महसूस करने लग जाता .... !! 

ख़िड़की के बाहर हरियाली से भरपूर पार्क, एक मनोरम झील, झील में अठखेलियाँ करती बत्तखें, पार्क में बच्चों की शरारतें, एक-दूसरे के हाथों में हाथ डाले दुनिया की सुध-बुध खोए युवा जोड़े तथा और भी बहुत कुछ....पहला बुज़ुर्ग सारे दृश्य देख-देखकर उन दृश्यों को अपने शब्दों में उकेरता रहता और दूसरा बुज़ुर्ग आँखें बंद करके जीवन से भरे उन्हीं रँगों में मानो कहीं खो जाया करता .... !! 

एक दिन पहले बुज़ुर्ग ने बाहर से गुज़र रही रँग-बिरँगी परेड का ""आँखों-देखा"" हाल भी दूसरे बुज़ुर्ग को सुनाया, साउंडप्रूफ़ कमरा होने की वजह से लेटा हुआ बुज़ुर्ग परेड के बैंड की धुनों को तो नहीं सुन सकता था लेकिन उसके दिमाग में उस परेड का अक्स पहले बुज़ुर्ग के शब्दों के मुताबिक उभर कर मानो साकार रूप में दिखाई ज़रूर पड़ने लगा था और वो उस परेड को दृश्य रूप में महसूस भी कर पाया .... !!

इसी तरह दिन, हफ्ते, महीने गुज़रते गए .... !!

एक सुबह नर्स कमरे में रोज़ाना की तरह दोनों बुज़ुर्गों को स्पंज बाथ दिलवाने के लिए गर्म पानी लेकर आई तो खिड़की के पास वाले बेड के बुज़ुर्ग को बिना हरकत किए सोए देखा फिर उसने ने बुज़ुर्ग की नब्ज चेक की, लेकिन :~~

बुज़ुर्ग के चेहरे पर असीम शांति थी और वो रात को नींद में ही दुनिया को छोड़कर जा चुका था .... !!

ये देख नर्स की भी आँखें नम हो गईं और फिर उसने अस्पताल के स्टॉफ को बुलाकर पहले बुज़ुर्ग के पार्थिव शरीर को ले जाने के लिए कहा, दूसरे बुज़ुर्ग को भी पहले बुज़ुर्ग का साथ छूट जाने का बहुत दुख हुआ....उसने नर्स से आग्रह किया कि उसे खिड़की के साथ वाली उसी बेड पर शिफ्ट कर दिया जाए, नर्स ने बुज़ुर्ग की इच्छा का मान रखते हुए तत्काल ही उसे उसी बेड पर शिफ्ट करा दिया .... !!

कमरे से नर्स के जाने के बाद दूसरे बुज़ुर्ग ने कोहनी के बल सिर उठाते हुए खिड़की के बाहर झाँकने की कोशिश की, लेकिन ये क्या .... ??

खिड़की के बाहर तो सिर्फ खाली दीवार ही थी, दूसरा बुज़ुर्ग बड़ा ही हैरान हुआ....फिर उसने बेड के साथ लगा बेल का बटन दबा कर नर्स को बुलाया और पूछा कि वो पहला बुज़ुर्ग जिस मनोरम झील तथा पार्क की बातें करता था वो सब कहाँ हैं, ये सुनकर नर्स की आँखें फिर गीली हो गईं और उसने धीमे शब्दों में जवाब दिया :~~

उनकी आँखों में रोशनी नहीं थी और वो तो इस खाली दीवार तक को नहीं देख सकते थे .... !!

सोमवार, 4 नवंबर 2013

**शुभ दीपावली**





सभी मित्रों को सपरिवार उजाले पर्व की उजली शुभकामनाऐँ....!!

शुभम् करोति कल्याणं, आरोग्यम् सुखसम्पदामं,
शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपम् ज्योति नमोस्तुते....!!

कुछ अपवादों को छोड़ दें तो आजकल सर्वत्र गुरु के नाम पर गुरुघंटाल मिल जाते हैं जो अक्सर ऐसा पाठ पढ़ाते और जयकारा लगवाते हुए सहज-सुलभ और प्रत्य़क्ष दृष्टिगोचर होते हैं :~~

**धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो**

क्या बकवास है, अरे भाई जब धर्म की जयजयकार हो गयी और धर्म स्थापित भी हो गया तो अधर्म बचा कहाँ जिसका नाश करने की हुंकारी भरवाई जाती है....यह बिलकुल वैसा ही है जैसे कोई धर्मगुरु{घंटाल} पहले तो यह कहे कि प्रकाश करो और फिर कहे कि अँधेरा दूर भगाओ....क्या मजाक है, अरे भले-घंटाल जब प्रकाश आ ही गया तो फिर अँधियारा बचा कहाँ जिसे दूर भागने की बात की जाय....आज के दौर में इस तरह के गुरुओं की "Whole Sale" भीड़ लगी है जो धन भी ले लेते हैं और "धरम" भी, साथ ही सोचने समझने की शक्ति भी कुंठित कर दिया करते हैं, ज्ञान का प्रकाश फ़ैलाने की बजाय अज्ञान का तमस और गहरा जाता है इन ढोंगियों के खटसंग से परन्तु लोग हैं कि मानते नहीं तथा कुछ "अतिरिक्त" पाने की चाह में इन धूर्तों के पीछे पागलों की भाँति मानो एक सम्मोहित अवस्था में दौड़ते फिरते हैं और ये तथाकथित खटगुरु नाना विधि से निरंतर अपने "उल्लुओं{चेलों का}" का शोषण करते रहते हैं, वैसे भी उल्लू के बगैर दीपावली कैसी यानि चेलों की किस्मत में अमावस का अँधियारा और "गुरुघंटालों" की पूरणमासी अर्थात बल्ले-बल्ले....और फिर नए उल्लू भी तो नित्य फँसते ही रहते हैं इनके पिजरे में क्योंकि "गुरुघंटाल" का सबसे प्यारा जुमला{फ़ंडा} है, मैं सतगुरु हूँ अतः मैं ही भगवान हूँ, इसलिए आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा .... !!

एक बार अँधेरे ने भगवान की अदालत में सूरज के ऊपर मुकदमा दायर किया जिसमे उल्लेख था, "हे न्यायकारी प्रभु, हुजूर, माई-बाप, दाता, दीनदयाल, परमपिता परमेश्वर -- सूरज अनंतकाल से मुझ पर जुल्म ढाये जा रहा है और मैं बेबस-चुपचाप सहने के लिए मजबूर हूँ" .... इस पर ईश्वर ने पूछा, "आखिर बात क्या है, जरा खुलकर बताओ....तुम्हें इन्साफ जरूर मिलेगा" और तब अंधियारे ने कहा, "हे प्रभु, मैं रोज बेधड़क अपनी काली चादर ताने अपना साम्राज्य स्थापित करता हूँ लेकिन हर बार एक निश्चित समय पर सूरज आकर मुझे भागने पर विवश कर देता है और मेरा नामोनिशान तक मिट जाता है" .... भगवान ने यह सुनकर सूरज के नाम सम्मन जारी कर दिया, जब सूरज भगवान के समक्ष हाजिर हुआ तो अँधेरा वहाँ पर उपस्थित नहीं था फिर भी भगवान ने अँधेरे के समस्त आरोप सूरज को बताया जिसे सुनकर सूरज अत्यंत आश्चर्यचकित होकर बोला, "ये अँधियारा कौन है, मैंने तो इसके बारे में न कहीं सुना और न कभी इस नाम के शख्स को देखा ही है....आप ऐसा कीजिये कि अगली दफा जब मैं आऊँ तो उस समय इस अंधियारे को भी बुलवा लीजियेगा, दोनों पक्षों के आमने-सामने रहने पर दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा....एक वह दिन था और एक आज का दिन, सूरज जब-जब आया अँधेरा उसके सामने कभी नहीं आया और यूँ यह मुकदमा आज तक अनसुलझा ही है .... !!

वस्तुतः अँधेरे नाम 
की चीज का कोई अस्तित्व ही नहीं होता, सत्य तो यही है कि प्रकाश की अनुपस्थिति को ही अँधेरा मान लिया जाता है....सत्य की असत्य पर और प्रकाश की अँधियारे पर विजय का नाम है उजाले का पावन पर्व दीपावली, वैसे इसकी बजाय यह कहना सर्वाधिक उचित होगा कि ज्ञानरुपी प्रकाश को आलोकित कर अज्ञानरुपी अँधकार को अपने जीवन से समग्र रूप से हटा देने का नाम ही दीपावली है .... !!

शुभ दीपावली .... !!