गुरुवार, 14 मार्च 2013

**आधी आबादी~..~पूरी कामयाबी**

विगत 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया गया था .... हमेशा की भांति ही इस वर्ष भी इसे फौरी तौर पर भले ही मना लिया गया हो पर तमाम उलझनों और अडचनों के बावजूद आज देश ही नहीं दुनियाभर में महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में भरपूर कामयाबी हासिल कर भलीभांति यह सिद्ध किया है कि वे भी आत्मनिर्भर हो सकती हैं और उन्हें किसी बैसाखी अथवा सहारे की... जरूरत अनिवार्य नहीं है, यूँ कहें तो ज्यादा बेहतर होगा कि इस "आधी-आबादी" ने "पूरी-कामयाबी" की इबारत सुनहरे अक्षरों में लिख दी है जिसका लोहा आज पूरी दुनिया मान रही है .... !!

यह वक्त बदलने का ही सबूत है कि कल तक घरों में बैठ चूल्हा-चौका, बच्चों की देखरेख और सजने-सँवरने तक ही सीमित क्षेत्र में जीनेवाली महिलाएं खेल-जगत, कारोबार, शिक्षा, कार्पोरेट-जगत का सफलता पूर्वक सँचालन, लेखन, फैशन से जुड़े व्यवसाय, स्टेज या समाजसेवा और राजनीति लगभग हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति मजबूती और कामयाबी के साथ दर्ज करा रही हैं .... आज की महिलायें लघु व कुटीर उद्योगों से लेकर बड़े-उद्योगों तक में अपना परचम लहरा रही हैं, फिर चाहे वह चित्रकारी के क्षेत्र की निदा महमूद हों या फैशन डिजायनर मोनिका बजाज या लक्ष्मी सीमेंट की मैनेजिंग-डाईरेक्टर विनीता सिंघानिया जिन्हें 1997 में बेस्ट वूमेन इंटरप्रेनर के अवार्ड से नवाजा गया था .... तसलीमा नसरीन और शोभा दे जैसी अन्य अनगिनत हस्तियों ने अपने रचनात्मक कार्यों से महिलाओं का सम्मान बढ़ाया ही है .... !!

हालाँकि औरतों को आधी-आबादी की सँज्ञा दी गयी है लेकिन "आधी-दुनिया" के विश्लेषण से नवाजने के बाद भी स्थिति भयावह है, फैशन, कला विज्ञापन से जुड़े व्यवसायों की महिमा मत पूछिए .... उन्होंने तो इस कदर महिलाओं के सम्मान को इस शर्मनाक स्तर तक गिरा दिया है कि आज औरत को भोग की वस्तु के रूप में परोसा एवँ देखा जाने लगा है लेकिन इस स्थिति के लिए औरतें भी कम जिम्मेदार नहीं हैं, भौंडे मनोरंजन के नाम पर स्वयँ को "मुन्नी"--"शीला"--"जलेबीबाई" के घटिया रूप में पेश करने से उनका ही नहीं समस्त नारी जाति का अपमान ही अभिव्यक्त होता है .... वहीँ दूसरी तरफ एक अच्छी बात भी जरूर है कि वर्तमान समय में बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण, जागरूकता एवँ शिक्षा के प्रसार से औरतों की स्थिति में उत्साहजनक बदलाव और काफी सुधार भी अवश्य आया है .... आज के मायावी युग में महिलाओं ने अपने पैरों पैर खड़ा होना सीख लिया है .... बरसों या शायद सदियों तक "कुएँ की मेंढक" बनी महिलाओं अपनी मँजिल तलाशनी शुरू कर दी है और अपने इन मंसूबों में कामयाब भी हो रही हैं .... !!

इन दिनों महिलायें पारिवारिक आमदनी के स्रोतों को बढ़ाने की दिशा में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, इससे इनके व्यक्तित्व में भी दिनो दिन निखार और आत्मविश्वास आता जा रहा है, यह भी कह सकते हैं कि आज की महिलायें तकरीबन सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ कदमताल कर रही हैं .... !!

इस 21 वीं सदी में नारी का यह नया सृजनशील रूप बेहद उत्साहजनक है .... नारी प्रकृति की की एक बेजोड़ करिश्मा की तरह है जिसे बनानेवाला शायद अब हैरान है .... नारी वह सच है जिसने मानव जीवन की कल्पनाओं को मातृरूप में स्नेहिल पोषण देकर इस योग्य बनाया कि वे पूरे किये जा सकें और जिसकी बदौलत ही यह पूरी कायनात टिकी हुई है .... ममता, करुना, दया, शक्ति और साहस का निर्वहन इसने विभिन्न रूपों में किया है भगवान के बाद मनुष्य स्त्रीजाति का शुक्रगुजार होना चाहिए .... सबसे पहले तो जीवन प्रदान करने के लिए और फिर उस जीवन को अपनी सम्पूर्ण देखभाल से बहुमूल्य बनाने के लिए बनाने के लिए .... वेदों में साफ़ लिखा है :~~

"यत्र नारी पूजयन्ते, रमतो तत्र देवता"

अर्थात जहाँ नारी की पूजा और सम्मान होता है वहाँ देवताओं का वास होता है .... स्त्री मातृजाति है इसलिए निस्संदेह सर्वप्रथम सम्मान की हक़दार हैं .... मुझे इस बात में कोई अतिश्योक्ति नजर नहीं आती क्योंकि मेरी माँ भी एक स्त्री ही थी जिसका स्थान मेरे ह्रदय में भगवान से भी पहले है .... !!
                                                                     
 
                                                                                 
              

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें