दोस्तों....कहते हैं प्रेम ईश्वर की ही एक अन्यतम अभिव्यक्ति है यानी प्यार भगवान का ही दूसरा स्वरुप है, ईश्वर को तो किसी ने देखा नहीं परन्तु माँ-बाप के रूप में साक्षात् ईश्वर और हमारे रचयिता जो आँखों के सामने हैं प्यार के नाम पर उनकी आशाओं एवँ उम्मीदों पर कुठाराघात करनेवाले रोमियो-जूलियट, लैला-मजनूँ, शीरी-फरहाद और सोहनी-महीवाल का उदहारण देकर अपनी मनमानी कर जाया करते हैं, मजेदार बात यह कि ये लोग लोककथाओ में वर्णित पात्र भर हैं, कभी पैदा नहीं हुये....यहाँ पर ध्यान रहे कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है परन्तु ऐसे नवयुवा समाज और परिवार की मान-मर्यादा को ताक पर रखकर सबको ठेंगा दिखाते हुए खुद को आधुनिक समझने की कथित भूल कर रहे हैं उनके लिये कुछ भी कहना लगभग व्यर्थ ही है, सिवाय उनकी अधकचरी बुद्धि पर अफ़सोस करने के....!!
बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है, यहाँ तो उल्लू का जोड़ा है जो एक दूजे को प्रामिस करते हुये शायद यह गीत गा रहा है{ध्यान से सुनने पर सुनाई अवश्य पड़ेगा....एक दूजे के लिये} :~~
प्रामिस कर ले साजना
तेरे बिना मैं न रहूँ
मेरे बिना तू न रहे हो के जुदा
ये प्रामिस किया न होंगे जुदा....ये प्रामिस किया....!!
मैं धड़कन तू दिल है पिया
मैं बाती तू मेरा दिया
हम प्यार की ज्योत जलाएं
मैं राही मेरी मंज़िल है तू
मैं हूँ लहर और साहिल है तू
जीवन भर साथ निभाएं -२
प्रामिस कर तू जान-ए-जां
मेरे बिना तू न रहे हो के जुदा
ये प्रामिस किया न होंगे जुदा....ये प्रामिस किया....!!
जब से मुझे तेरा प्यार मिला
अपनी तो है बस यही दुआ
हर जनम यूँ मिलते रहेंगे
सुंदर सा हो अपना जहां
प्यार अपना रहे सदा जवां
हम सुख-दुख मिल के सहेंगे
प्रामिस करे ले साजना
मेरे बिना तू न रहे हो के जुदा
ये प्रामिस किया न होंगे जुदा....ये प्रामिस किया....!!
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