सोमवार, 4 नवंबर 2013

**शुभ दीपावली**





सभी मित्रों को सपरिवार उजाले पर्व की उजली शुभकामनाऐँ....!!

शुभम् करोति कल्याणं, आरोग्यम् सुखसम्पदामं,
शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपम् ज्योति नमोस्तुते....!!

कुछ अपवादों को छोड़ दें तो आजकल सर्वत्र गुरु के नाम पर गुरुघंटाल मिल जाते हैं जो अक्सर ऐसा पाठ पढ़ाते और जयकारा लगवाते हुए सहज-सुलभ और प्रत्य़क्ष दृष्टिगोचर होते हैं :~~

**धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो**

क्या बकवास है, अरे भाई जब धर्म की जयजयकार हो गयी और धर्म स्थापित भी हो गया तो अधर्म बचा कहाँ जिसका नाश करने की हुंकारी भरवाई जाती है....यह बिलकुल वैसा ही है जैसे कोई धर्मगुरु{घंटाल} पहले तो यह कहे कि प्रकाश करो और फिर कहे कि अँधेरा दूर भगाओ....क्या मजाक है, अरे भले-घंटाल जब प्रकाश आ ही गया तो फिर अँधियारा बचा कहाँ जिसे दूर भागने की बात की जाय....आज के दौर में इस तरह के गुरुओं की "Whole Sale" भीड़ लगी है जो धन भी ले लेते हैं और "धरम" भी, साथ ही सोचने समझने की शक्ति भी कुंठित कर दिया करते हैं, ज्ञान का प्रकाश फ़ैलाने की बजाय अज्ञान का तमस और गहरा जाता है इन ढोंगियों के खटसंग से परन्तु लोग हैं कि मानते नहीं तथा कुछ "अतिरिक्त" पाने की चाह में इन धूर्तों के पीछे पागलों की भाँति मानो एक सम्मोहित अवस्था में दौड़ते फिरते हैं और ये तथाकथित खटगुरु नाना विधि से निरंतर अपने "उल्लुओं{चेलों का}" का शोषण करते रहते हैं, वैसे भी उल्लू के बगैर दीपावली कैसी यानि चेलों की किस्मत में अमावस का अँधियारा और "गुरुघंटालों" की पूरणमासी अर्थात बल्ले-बल्ले....और फिर नए उल्लू भी तो नित्य फँसते ही रहते हैं इनके पिजरे में क्योंकि "गुरुघंटाल" का सबसे प्यारा जुमला{फ़ंडा} है, मैं सतगुरु हूँ अतः मैं ही भगवान हूँ, इसलिए आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा .... !!

एक बार अँधेरे ने भगवान की अदालत में सूरज के ऊपर मुकदमा दायर किया जिसमे उल्लेख था, "हे न्यायकारी प्रभु, हुजूर, माई-बाप, दाता, दीनदयाल, परमपिता परमेश्वर -- सूरज अनंतकाल से मुझ पर जुल्म ढाये जा रहा है और मैं बेबस-चुपचाप सहने के लिए मजबूर हूँ" .... इस पर ईश्वर ने पूछा, "आखिर बात क्या है, जरा खुलकर बताओ....तुम्हें इन्साफ जरूर मिलेगा" और तब अंधियारे ने कहा, "हे प्रभु, मैं रोज बेधड़क अपनी काली चादर ताने अपना साम्राज्य स्थापित करता हूँ लेकिन हर बार एक निश्चित समय पर सूरज आकर मुझे भागने पर विवश कर देता है और मेरा नामोनिशान तक मिट जाता है" .... भगवान ने यह सुनकर सूरज के नाम सम्मन जारी कर दिया, जब सूरज भगवान के समक्ष हाजिर हुआ तो अँधेरा वहाँ पर उपस्थित नहीं था फिर भी भगवान ने अँधेरे के समस्त आरोप सूरज को बताया जिसे सुनकर सूरज अत्यंत आश्चर्यचकित होकर बोला, "ये अँधियारा कौन है, मैंने तो इसके बारे में न कहीं सुना और न कभी इस नाम के शख्स को देखा ही है....आप ऐसा कीजिये कि अगली दफा जब मैं आऊँ तो उस समय इस अंधियारे को भी बुलवा लीजियेगा, दोनों पक्षों के आमने-सामने रहने पर दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा....एक वह दिन था और एक आज का दिन, सूरज जब-जब आया अँधेरा उसके सामने कभी नहीं आया और यूँ यह मुकदमा आज तक अनसुलझा ही है .... !!

वस्तुतः अँधेरे नाम 
की चीज का कोई अस्तित्व ही नहीं होता, सत्य तो यही है कि प्रकाश की अनुपस्थिति को ही अँधेरा मान लिया जाता है....सत्य की असत्य पर और प्रकाश की अँधियारे पर विजय का नाम है उजाले का पावन पर्व दीपावली, वैसे इसकी बजाय यह कहना सर्वाधिक उचित होगा कि ज्ञानरुपी प्रकाश को आलोकित कर अज्ञानरुपी अँधकार को अपने जीवन से समग्र रूप से हटा देने का नाम ही दीपावली है .... !!

शुभ दीपावली .... !!


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